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शिमला , 21 मई [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पहले बसों का न्यूनतम किराया 5 रुपए से बढ़ाकर 10 रुपए किया, जोकि 100% की वृद्धि है। इसके बाद बसों के किराए में फिर से 15 प्रतिशत की वृद्धि की गई, जिससे अब साधारण बसों में मैदानी क्षेत्रों में 1.40 पैसे प्रति किलोमीटर से बढ़ा कर 1.60 पैसे कर दिया है और पहाड़ी क्षेत्रों में 2.19 पैसे से बढ़ा कर 2.50 पैसे कर दिया गया है। इस तरह सभी तरह की बसों के किरायों में न्यूनतम 0.20 रुपए से लेकर अधिकतम 0.68 रुपए प्रति किलोमीटर तक वृद्धि की गई है। जोकि बहुत अधिक है। इसके बाद अब स्कूल बसों के किराए में एक बार फिर से वृद्धि कर इसे 2500 रूपए तक प्रति माह कर दिया है। अक्टूबर, 2024 तक जहां 0-5 किलोमीटर तक स्कूल बसों का किराया 600 रुपए प्रति माह लिया जाता था अब 8 माह बाद इसे 3 गुना बढ़ा कर 1800 रुपए प्रति माह कर दिया गया है। स्कूल बसों के मासिक पास किराए में की गई वृद्धि तो प्रति दिन लिए जाने वाले साधारण किराए से लगभग दोगुना किराया बनता है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सरकार के बस किराया वृद्धि के इस जनविरोधी निर्णय की निंदा करती है तथा मांग करती है कि सरकार सभी तरह के किराया वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापिस ले। यदि सरकार इस बस किराया वृद्धि के निर्णय को तुरन्त प्रभाव से वापिस नहीं लेती तो पार्टी सरकार के इस आम जनता पर आर्थिक बोझ डालने वाले निर्णय के विरूद्ध जनता को लामबंद कर प्रदेशव्यापी आंदोलन करेगी। प्रदेश में रेलवे लाइनों व अन्य परिवहन के साधनों के अभाव मे जनसाधारण का बस सेवा ही एकमात्र परिवहन का साधन है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में आम जनता बस से ही सफर कर पाती है। इसलिए इस बस किराए वृद्धि से आम जनता विशेष रूप से किसान, मज़दूर, छात्र, कर्मचारी, महिला व युवा वर्ग बुरी तरह से प्रभावित होंगे। हर रोज सफर करने वाले जिसमे ध्याड़ी मज़दूरी करने वाले मज़दूर, स्कूली बच्चे, कर्मचारी, कामकाजी महिलाएं व किसान शामिल है को कम दूरी के सफ़र के लिए लगभग दोगुना या इससे अधिक बस किराया देना होगा। वर्तमान कांग्रेस सरकार भी केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियों का ही अनुसरण कर रही है। इन नीतियों के चलते सरकार सार्वजानिक क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकार द्वारा प्रदेश मे चल रहे आर्थिक संकट तथा एचआरटीसी को घाटे से उभारने के नाम पर बस किराए में वृद्धि का तर्क दिया जा रहा है। जबकि हकीकत इससे अलग ही है। आर्थिक संकट के लिए प्रदेश मे एक के बाद एक आने वाली सरकार द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियां जिम्मेवार है तथा इन्ही नीतियों के चलते प्रदेश मे सरकार द्वारा परिवहन क्षेत्र मे भी निजीकरण की नीतियां लागू की जा रही है। जिसके कारण आज सार्वजनिक क्षेत्र के एचआरटीसी में बसों की संख्या तथा रूटों में निरंतर कटौती की जा रही है तथा अधिकांश जो मुनाफे वाले रूट है उन पर निजी बस ऑपरेटरों को बस सेवा प्रदान करने के लिए परमिट जारी किए जा रहे हैं। जिसके चलते आज एचआरटीसी के पास मात्र 2573 रूट तथा 3150 बसे रह गई है। जबकि निजी ऑपरेटरों के पास अधिकांश बस रूट है तथा इनकी 8300 के करीब बसे चल रही है। इसके साथ ही मुनाफे के रूट निजी ऑपरेटरों को दिए जा रहे हैं और एचआरटीसी को घाटा उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। न्यूनतम बस किराया तथा स्कूल बसों के मासिक बस पास की दरों में भारी वृद्धि से शहरी क्षेत्रों विशेष रूप से राजधानी शिमला जैसे शहर, जो पहले ही ट्रैफिक की विकराल समस्या से जूझ रहे हैं, में इसका बेहद प्रतिकूल असर देखने को मिलेगा। इस भारी बस किराए वृद्धि से लोग स्कूल, कार्यालय व अन्य कार्यों के लिए निजी वाहनों को प्राथमिकता देंगे जिससे शहर में ट्रैफिक तथा प्रदूषण की समस्या और अधिक विकराल होगी। बस किराया वृद्धि के इस निर्णय से अकेल शिमला शहर में करीब 500 से अधिक गाड़ियां सड़को पर अतिरिक्त दौड़ेंगी। पार्टी मांग करती है कि सरकार अपना कल्याणकारी राज्य के दायित्व का निर्वहन करते हुए इस बस किराए वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापिस ले तथा इसके साथ ही एचआरटीसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत कर जनता को बेहतर परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाए। विश्वभर में परिवहन सेवा के निजीकरण के अच्छे परिणाम नहीं देखे गए हैं। जिसके चलते कई देशों मे अब परिवहन को निजी कंपनियों से लेकर इसको सार्वजनिक क्षेत्र में चलाया जा रहा है। विश्व में ऐसे भी कई शहर है जो परिवहन सेवाए मुफ्त उपलब्ध करवा रहे हैं।
शिमला , 21 मई [ विशाल सूद ] !
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पहले बसों का न्यूनतम किराया 5 रुपए से बढ़ाकर 10 रुपए किया, जोकि 100% की वृद्धि है। इसके बाद बसों के किराए में फिर से 15 प्रतिशत की वृद्धि की गई, जिससे अब साधारण बसों में मैदानी क्षेत्रों में 1.40 पैसे प्रति किलोमीटर से बढ़ा कर 1.60 पैसे कर दिया है और पहाड़ी क्षेत्रों में 2.19 पैसे से बढ़ा कर 2.50 पैसे कर दिया गया है।
इस तरह सभी तरह की बसों के किरायों में न्यूनतम 0.20 रुपए से लेकर अधिकतम 0.68 रुपए प्रति किलोमीटर तक वृद्धि की गई है। जोकि बहुत अधिक है। इसके बाद अब स्कूल बसों के किराए में एक बार फिर से वृद्धि कर इसे 2500 रूपए तक प्रति माह कर दिया है। अक्टूबर, 2024 तक जहां 0-5 किलोमीटर तक स्कूल बसों का किराया 600 रुपए प्रति माह लिया जाता था अब 8 माह बाद इसे 3 गुना बढ़ा कर 1800 रुपए प्रति माह कर दिया गया है।
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स्कूल बसों के मासिक पास किराए में की गई वृद्धि तो प्रति दिन लिए जाने वाले साधारण किराए से लगभग दोगुना किराया बनता है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सरकार के बस किराया वृद्धि के इस जनविरोधी निर्णय की निंदा करती है तथा मांग करती है कि सरकार सभी तरह के किराया वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापिस ले। यदि सरकार इस बस किराया वृद्धि के निर्णय को तुरन्त प्रभाव से वापिस नहीं लेती तो पार्टी सरकार के इस आम जनता पर आर्थिक बोझ डालने वाले निर्णय के विरूद्ध जनता को लामबंद कर प्रदेशव्यापी आंदोलन करेगी।
प्रदेश में रेलवे लाइनों व अन्य परिवहन के साधनों के अभाव मे जनसाधारण का बस सेवा ही एकमात्र परिवहन का साधन है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में आम जनता बस से ही सफर कर पाती है। इसलिए इस बस किराए वृद्धि से आम जनता विशेष रूप से किसान, मज़दूर, छात्र, कर्मचारी, महिला व युवा वर्ग बुरी तरह से प्रभावित होंगे। हर रोज सफर करने वाले जिसमे ध्याड़ी मज़दूरी करने वाले मज़दूर, स्कूली बच्चे, कर्मचारी, कामकाजी महिलाएं व किसान शामिल है को कम दूरी के सफ़र के लिए लगभग दोगुना या इससे अधिक बस किराया देना होगा।
वर्तमान कांग्रेस सरकार भी केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियों का ही अनुसरण कर रही है। इन नीतियों के चलते सरकार सार्वजानिक क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकार द्वारा प्रदेश मे चल रहे आर्थिक संकट तथा एचआरटीसी को घाटे से उभारने के नाम पर बस किराए में वृद्धि का तर्क दिया जा रहा है। जबकि हकीकत इससे अलग ही है।
आर्थिक संकट के लिए प्रदेश मे एक के बाद एक आने वाली सरकार द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियां जिम्मेवार है तथा इन्ही नीतियों के चलते प्रदेश मे सरकार द्वारा परिवहन क्षेत्र मे भी निजीकरण की नीतियां लागू की जा रही है। जिसके कारण आज सार्वजनिक क्षेत्र के एचआरटीसी में बसों की संख्या तथा रूटों में निरंतर कटौती की जा रही है तथा अधिकांश जो मुनाफे वाले रूट है उन पर निजी बस ऑपरेटरों को बस सेवा प्रदान करने के लिए परमिट जारी किए जा रहे हैं।
जिसके चलते आज एचआरटीसी के पास मात्र 2573 रूट तथा 3150 बसे रह गई है। जबकि निजी ऑपरेटरों के पास अधिकांश बस रूट है तथा इनकी 8300 के करीब बसे चल रही है। इसके साथ ही मुनाफे के रूट निजी ऑपरेटरों को दिए जा रहे हैं और एचआरटीसी को घाटा उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। न्यूनतम बस किराया तथा स्कूल बसों के मासिक बस पास की दरों में भारी वृद्धि से शहरी क्षेत्रों विशेष रूप से राजधानी शिमला जैसे शहर, जो पहले ही ट्रैफिक की विकराल समस्या से जूझ रहे हैं, में इसका बेहद प्रतिकूल असर देखने को मिलेगा।
इस भारी बस किराए वृद्धि से लोग स्कूल, कार्यालय व अन्य कार्यों के लिए निजी वाहनों को प्राथमिकता देंगे जिससे शहर में ट्रैफिक तथा प्रदूषण की समस्या और अधिक विकराल होगी। बस किराया वृद्धि के इस निर्णय से अकेल शिमला शहर में करीब 500 से अधिक गाड़ियां सड़को पर अतिरिक्त दौड़ेंगी।
पार्टी मांग करती है कि सरकार अपना कल्याणकारी राज्य के दायित्व का निर्वहन करते हुए इस बस किराए वृद्धि के निर्णय को तुरन्त वापिस ले तथा इसके साथ ही एचआरटीसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत कर जनता को बेहतर परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाए। विश्वभर में परिवहन सेवा के निजीकरण के अच्छे परिणाम नहीं देखे गए हैं। जिसके चलते कई देशों मे अब परिवहन को निजी कंपनियों से लेकर इसको सार्वजनिक क्षेत्र में चलाया जा रहा है। विश्व में ऐसे भी कई शहर है जो परिवहन सेवाए मुफ्त उपलब्ध करवा रहे हैं।
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