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शिमला , [ सुन्नी ] 19 मार्च [ हरीश गौतम ] ! हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित संत निरंकारी भवन ब्रांच सुन्नी में रविवार को क्षेत्रीय महिला संत समागम का आयोजन किया गया। इस मौके पर समागम की सारी जिम्मेवारी महिलाओं ने ही निभाई। इस समागम में बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया। इस महिला संत समागम में भक्ति और विज्ञान का मिला जुला रूप देखने को मिला। संत निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है जो ब्रह्मज्ञान द्वारा मानव को मानव से जोड़ने का कार्य करता है। ज्ञान के उजाले से मानव मन में व्याप्त समस्त भ्रम-भ्रांतियां समाप्त हो जाती है और मानव को मानव प्यारा लगने लगता है। ‘‘ब्रह्मज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं अपितु उसे प्रतिपल जीना ही वास्तविक मुक्ति है।‘‘ यह विचार संत निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी ने कही। उन्होंने कहा कि हमें अपना संभाव बदलाना है लेकिन अहंकार हमें नही बदलने देता। सहज जीवन को बदलने के लिए हमें बदलना होगा। वर्तमान समय में जहाँ हर तरफ वैर, निन्दा, ईष्र्या का भाव है ऐसे समय में प्रेम एवं सौहार्द प्रदान कर रहे है जिससे की वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना को साकार रूप प्रदान किया जा सके। इस समागम में किन्नौर, रामपुर कुमारसेंन, ठियोग, जुब्बल, रोहडू चिडगांव, शिमला, जुन्गा, फायल, सायरी और धामी डीग्याना से तकरीबन 500 से अधिक महिलाओं ने इस समागम में भाग लिया। इसके इलावा महिलाओं ने कबि सम्मेलन का आयोजन भी किया। महिला भक्तिों ने गीत, विचारों द्वारा सतगुरू के बताए हुए उपदेशों के तहत निरंकार प्रभु परमात्मा को अपने जीवन का आधार बनाई क्योकि परमात्मा जानने योग्य है और इस पूर्ण सतगुरू की कृपा से जाना जा सकता है। इस समागत की अध्यक्षता श्रीमती सुमन भारद्वाज जी व मंच संचालन बहन अनिता कश्यप ने किया। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
शिमला , [ सुन्नी ] 19 मार्च [ हरीश गौतम ] ! हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित संत निरंकारी भवन ब्रांच सुन्नी में रविवार को क्षेत्रीय महिला संत समागम का आयोजन किया गया। इस मौके पर समागम की सारी जिम्मेवारी महिलाओं ने ही निभाई। इस समागम में बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया। इस महिला संत समागम में भक्ति और विज्ञान का मिला जुला रूप देखने को मिला।
संत निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है जो ब्रह्मज्ञान द्वारा मानव को मानव से जोड़ने का कार्य करता है। ज्ञान के उजाले से मानव मन में व्याप्त समस्त भ्रम-भ्रांतियां समाप्त हो जाती है और मानव को मानव प्यारा लगने लगता है। ‘‘ब्रह्मज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं अपितु उसे प्रतिपल जीना ही वास्तविक मुक्ति है।‘‘ यह विचार संत निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी ने कही।
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उन्होंने कहा कि हमें अपना संभाव बदलाना है लेकिन अहंकार हमें नही बदलने देता। सहज जीवन को बदलने के लिए हमें बदलना होगा।
वर्तमान समय में जहाँ हर तरफ वैर, निन्दा, ईष्र्या का भाव है ऐसे समय में प्रेम एवं सौहार्द प्रदान कर रहे है जिससे की वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना को साकार रूप प्रदान किया जा सके।
इस समागम में किन्नौर, रामपुर कुमारसेंन, ठियोग, जुब्बल, रोहडू चिडगांव, शिमला, जुन्गा, फायल, सायरी और धामी डीग्याना से तकरीबन 500 से अधिक महिलाओं ने इस समागम में भाग लिया। इसके इलावा महिलाओं ने कबि सम्मेलन का आयोजन भी किया।
महिला भक्तिों ने गीत, विचारों द्वारा सतगुरू के बताए हुए उपदेशों के तहत निरंकार प्रभु परमात्मा को अपने जीवन का आधार बनाई क्योकि परमात्मा जानने योग्य है और इस पूर्ण सतगुरू की कृपा से जाना जा सकता है। इस समागत की अध्यक्षता श्रीमती सुमन भारद्वाज जी व मंच संचालन बहन अनिता कश्यप ने किया।- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
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