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सोलन , 21 जुलाई [ विशाल सूद ] ! भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विवेक शर्मा ने सेब बगीचों के कटान पर सरकार पर हमला बोलते हुए कहा हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने फलदार पौधों को वन भूमि से हटाने के आदेशों का पालन कर रही प्रदेश कांग्रेस सरकार, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ जन भावनाओं का गला भी घोट रही है। कांग्रेस सरकार अगर सी.पी.एस के मामले में सुबह होने से पूर्व सर्वोत्तम न्यायालय पहुंच सकती है, पालमपुर विश्वविद्यालय की भूमि अधिग्रहण के लिए सर्वोत्तम न्यायालय पहुंच सकती है तो आखिर करोड़ों के सेब उत्पादन व अर्थव्यवस्था पर खामोश क्यों है। सर्वोत्तम न्यायालय ने भी वन भूमि पर अधिग्रहण को लेकर सख्त आदेश दिए हैं। लेकिन उस पर फलदार पौधों को लेकर सरकार अपने विवेक का उपयोग क्यों नहीं कर पा रही हैं। उच्च न्यायालय ने सरकार से फलदार पौधों की व्यवस्था पर सवाल पूछा, तो उत्तर में कांग्रेस सरकार ने 2 जुलाई 2025 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर के कहा था की फॉरेस्ट विभाग वन भूमि पर लगे सेब बगीचों की व्यवस्था को व्यवस्थित करने में असमर्थ है और सेब का पौधा कोई वन्य प्रजाति का नहीं है। विवेक शर्मा ने कहा हैरत की बात है। जब के हिमाचल प्रदेश में सभी प्रकार के पेड़ काटने पर प्रतिबंध है। जो पांच प्रजातियां काटने की अनुमति फॉरेस्ट विभाग द्वारा दी हुई है उनमें सेब नहीं आता है। सरकार की नियत और नीति इस बात से प्रमाणित होती है कि जो सरकार हिमफैड को शराब बेचने के लिए अधिकृत कर सकती है नीति बना सकती है आखिर वह आत्मनिर्भर हिमाचल की बात करने वाली सरकार सेब से उत्पन्न 13% जी.डी.पी और 100 करोड़ की खड़ी सेब व नाशपाती की अर्थव्यवस्था को अधीग्रहण कर के नीलामी क्यों नहीं करना चाहती। सरकारी भूमि पर फलदार पौधों को सरकार क्यों नहीं बेच सकती और सरकार में बैठे हुए भ्रष्ट अधिकारी और सेक्रेटरी अगर 10 लाख के सेब राजस्थान, दिल्ली पहुंचा सकते हैं तो नीति क्यों नहीं बना सकते। हम हिमाचल और हिमाचलियत दस्तावेज मे खेती और बागवानी में कांग्रेस ने दावा किया था की सत्ता में आते ही कृषि और बागवानी कमीशन का गठन किया जाएगा। आज फॉरेस्ट विभाग 400 एकड़ भूमि पर फल दाई पेड़ काट रहा है। प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय में प्रदेश का पक्ष रखने में असफल रही सरकार हिमाचल प्रदेश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रही है। मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए वन भूमि अधिनियम 1927, वन आरक्षण अधिनियम 1980 और वन अधिकार अधिनियम 2006 में परिवर्तन के लिए भाजपा सांसदों को दिल्ली चलकर नियमों में परिवर्तन करने के लिए राजनीतिक बयान बाजी करते हैं। हालत यह है कि न्यायालय में हलफनामे देने की क्षमता नहीं है। कार्बन क्रेडिट की दावेदारी करती सरकार 100 करोड़ के सेब पर आरी चलवा रही हैं।
सोलन , 21 जुलाई [ विशाल सूद ] ! भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विवेक शर्मा ने सेब बगीचों के कटान पर सरकार पर हमला बोलते हुए कहा हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने फलदार पौधों को वन भूमि से हटाने के आदेशों का पालन कर रही प्रदेश कांग्रेस सरकार, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ जन भावनाओं का गला भी घोट रही है।
कांग्रेस सरकार अगर सी.पी.एस के मामले में सुबह होने से पूर्व सर्वोत्तम न्यायालय पहुंच सकती है, पालमपुर विश्वविद्यालय की भूमि अधिग्रहण के लिए सर्वोत्तम न्यायालय पहुंच सकती है तो आखिर करोड़ों के सेब उत्पादन व अर्थव्यवस्था पर खामोश क्यों है। सर्वोत्तम न्यायालय ने भी वन भूमि पर अधिग्रहण को लेकर सख्त आदेश दिए हैं। लेकिन उस पर फलदार पौधों को लेकर सरकार अपने विवेक का उपयोग क्यों नहीं कर पा रही हैं।
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उच्च न्यायालय ने सरकार से फलदार पौधों की व्यवस्था पर सवाल पूछा, तो उत्तर में कांग्रेस सरकार ने 2 जुलाई 2025 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर के कहा था की फॉरेस्ट विभाग वन भूमि पर लगे सेब बगीचों की व्यवस्था को व्यवस्थित करने में असमर्थ है और सेब का पौधा कोई वन्य प्रजाति का नहीं है। विवेक शर्मा ने कहा हैरत की बात है।
जब के हिमाचल प्रदेश में सभी प्रकार के पेड़ काटने पर प्रतिबंध है। जो पांच प्रजातियां काटने की अनुमति फॉरेस्ट विभाग द्वारा दी हुई है उनमें सेब नहीं आता है। सरकार की नियत और नीति इस बात से प्रमाणित होती है कि जो सरकार हिमफैड को शराब बेचने के लिए अधिकृत कर सकती है नीति बना सकती है आखिर वह आत्मनिर्भर हिमाचल की बात करने वाली सरकार सेब से उत्पन्न 13% जी.डी.पी और 100 करोड़ की खड़ी सेब व नाशपाती की अर्थव्यवस्था को अधीग्रहण कर के नीलामी क्यों नहीं करना चाहती।
सरकारी भूमि पर फलदार पौधों को सरकार क्यों नहीं बेच सकती और सरकार में बैठे हुए भ्रष्ट अधिकारी और सेक्रेटरी अगर 10 लाख के सेब राजस्थान, दिल्ली पहुंचा सकते हैं तो नीति क्यों नहीं बना सकते।
हम हिमाचल और हिमाचलियत दस्तावेज मे खेती और बागवानी में कांग्रेस ने दावा किया था की सत्ता में आते ही कृषि और बागवानी कमीशन का गठन किया जाएगा। आज फॉरेस्ट विभाग 400 एकड़ भूमि पर फल दाई पेड़ काट रहा है। प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय में प्रदेश का पक्ष रखने में असफल रही सरकार हिमाचल प्रदेश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रही है।
मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए वन भूमि अधिनियम 1927, वन आरक्षण अधिनियम 1980 और वन अधिकार अधिनियम 2006 में परिवर्तन के लिए भाजपा सांसदों को दिल्ली चलकर नियमों में परिवर्तन करने के लिए राजनीतिक बयान बाजी करते हैं। हालत यह है कि न्यायालय में हलफनामे देने की क्षमता नहीं है। कार्बन क्रेडिट की दावेदारी करती सरकार 100 करोड़ के सेब पर आरी चलवा रही हैं।
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