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चम्बा , 05 नवंबर [ के एस प्रेमी ] ! चम्बा की कला, संस्कृति और विरासत के लिए एक डिजिटल मंच तैयार किया जाएगा, ताकि आने वाले समय में शोधार्थियों के लिए शोध संबंधी सारी सामग्री एक ही जगह पर उपलब्ध हो पाए। साथ ही उनकी जो रिसर्च तैयार होकर आए वह भी चम्बा में रहे ताकि इसका लाभ यहां के बच्चों और युवाओं को मिल सके। यह निर्णय चम्बा के भूरी सिंह संग्रहालय में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन हिमालयन लेगेसीज, एक्सप्लोरिंग हिस्ट्रीज, हेरिटेज प्रैक्टिसेज एंड कल्चरल फ्यूचर्स के एक सत्र में लिया गया। यह आयोजन भूरी सिंह संग्रहालय चंबा तथा नॉट ऑन मैप के संयुक्त तत्वावधान में संग्रहालय की स्थापना के 117वें वर्ष के उपलक्ष्य में किया गया है। तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में देशभर से विद्वान, शोधकर्ता और सांस्कृतिक विशेषज्ञ शामिल हुए। बुधवार को कुल छह शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। सम्मेलन में डॉ. पर्वत रंजन सेठी इतिहास विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश ने हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. विद्या सागर शर्मा पूर्व संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा विभाग ने सामूहिक प्रयासों से हिमाचल की संस्कृति को बचाने पर बल दिया। वहीं राज्य संग्रहालय शिमला के क्यूरेटर डा. हरि चौहान ने भी संबोधित किया। सम्मेलन के समापन पर डॉ. सचिन कुमार प्राचार्य डब्ल्यूआरएस राजकीय महाविद्यालय देहरी ने होम-स्टे नीति को इस विरोधाभास का प्रमुख उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि यह नीति ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने और स्थानीय आय में वृद्धि के उद्देश्य से लाई गई थी, पर विडंबना यह है कि इसने पारंपरिक हिमाचली घरों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। पत्थर और मिट्टी से बने ये सैकड़ों वर्ष पुराने मकान जो मौसम की मार सहते आए हैं, “पक्के” (कंक्रीट) निर्माण और संलग्न शौचालय की अनिवार्यता के कारण इस योजना से बाहर हो गए हैं। डॉ. कुमार ने कहा कि संस्कृति को केवल प्रदर्शन या उत्सवों तक सीमित करने के बजाय उसे जीवंत संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए, जो पहचान और अर्थव्यवस्था दोनों को संबल देता है। उन्होंने नीति निर्माताओं से “संस्कृति को दिखाने” से आगे बढ़कर “संस्कृति को साझा करने” की दिशा में कदम उठाने की अपील की, ताकि समुदाय अपनी परंपराओं के स्वामी बने रहें और उनके संरक्षण से आर्थिक लाभ भी प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि चम्बा की असली पहचान केवल मंदिरों या प्राकृतिक सौंदर्य में नहीं, बल्कि उसकी अमूर्त सांस्कृतिक संपदा लोकगीतों, ऋतु गीतों, मौखिक परंपराओं और पर्वतीय जीवन की लय में छिपी है। चंबा आस्था और उपयोगिता का संगम है, जहाँ मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे और किले भारत की बहुलतावादी भावना का जीवंत प्रमाण है। अंतिम दिवस पर दो सत्र आयोजित हुए। पहला सत्र “सांस्कृतिक स्मृति, विरासत और कलात्मक अभिव्यक्ति” तथा दूसरा “हिमालयी संस्कृति का भविष्य—नीति, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन रहा। इस अवसर पर शोधार्थी विकास बन्याल, ममता देवर, मधु चंदा, अमित शोष्टा, यदुनंदन और शिवम ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। जिला भाषा अधिकारी चंबा तुकेश शर्मा, डीपी मल्होत्रा, डॉ. विपिन राठौर, डॉ. विद्यासागर शर्मा, डॉ. मोहिंदर सालारिया, डॉ. कविता बिजलवान किरण कुमार वशिष्ठ, भूपिंदर जसरोटिया, धर्म देवा, नोट ओं मैप संस्था के संस्थापक मनुज शर्मा, मगनदीप, विकास तथा राजेश मौजूद रहे। भूरी सिंह संग्रहालय में तीन दिनों तक आयोजित सम्मेलन में सभी विद्वानों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। हम यहां पर भाग लेने वाले सभी आदिवासियों का आभार व्यक्त करते हैं। साथ ही इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी करवाने का प्रयास रहेगा।
चम्बा , 05 नवंबर [ के एस प्रेमी ] ! चम्बा की कला, संस्कृति और विरासत के लिए एक डिजिटल मंच तैयार किया जाएगा, ताकि आने वाले समय में शोधार्थियों के लिए शोध संबंधी सारी सामग्री एक ही जगह पर उपलब्ध हो पाए। साथ ही उनकी जो रिसर्च तैयार होकर आए वह भी चम्बा में रहे ताकि इसका लाभ यहां के बच्चों और युवाओं को मिल सके।
यह निर्णय चम्बा के भूरी सिंह संग्रहालय में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन हिमालयन लेगेसीज, एक्सप्लोरिंग हिस्ट्रीज, हेरिटेज प्रैक्टिसेज एंड कल्चरल फ्यूचर्स के एक सत्र में लिया गया। यह आयोजन भूरी सिंह संग्रहालय चंबा तथा नॉट ऑन मैप के संयुक्त तत्वावधान में संग्रहालय की स्थापना के 117वें वर्ष के उपलक्ष्य में किया गया है।
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तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में देशभर से विद्वान, शोधकर्ता और सांस्कृतिक विशेषज्ञ शामिल हुए। बुधवार को कुल छह शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। सम्मेलन में डॉ. पर्वत रंजन सेठी इतिहास विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश ने हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. विद्या सागर शर्मा पूर्व संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा विभाग ने सामूहिक प्रयासों से हिमाचल की संस्कृति को बचाने पर बल दिया। वहीं राज्य संग्रहालय शिमला के क्यूरेटर डा. हरि चौहान ने भी संबोधित किया।
सम्मेलन के समापन पर डॉ. सचिन कुमार प्राचार्य डब्ल्यूआरएस राजकीय महाविद्यालय देहरी ने होम-स्टे नीति को इस विरोधाभास का प्रमुख उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि यह नीति ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने और स्थानीय आय में वृद्धि के उद्देश्य से लाई गई थी, पर विडंबना यह है कि इसने पारंपरिक हिमाचली घरों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। पत्थर और मिट्टी से बने ये सैकड़ों वर्ष पुराने मकान जो मौसम की मार सहते आए हैं, “पक्के” (कंक्रीट) निर्माण और संलग्न शौचालय की अनिवार्यता के कारण इस योजना से बाहर हो गए हैं।
डॉ. कुमार ने कहा कि संस्कृति को केवल प्रदर्शन या उत्सवों तक सीमित करने के बजाय उसे जीवंत संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए, जो पहचान और अर्थव्यवस्था दोनों को संबल देता है। उन्होंने नीति निर्माताओं से “संस्कृति को दिखाने” से आगे बढ़कर “संस्कृति को साझा करने” की दिशा में कदम उठाने की अपील की, ताकि समुदाय अपनी परंपराओं के स्वामी बने रहें और उनके संरक्षण से आर्थिक लाभ भी प्राप्त करें।
उन्होंने कहा कि चम्बा की असली पहचान केवल मंदिरों या प्राकृतिक सौंदर्य में नहीं, बल्कि उसकी अमूर्त सांस्कृतिक संपदा लोकगीतों, ऋतु गीतों, मौखिक परंपराओं और पर्वतीय जीवन की लय में छिपी है। चंबा आस्था और उपयोगिता का संगम है, जहाँ मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे और किले भारत की बहुलतावादी भावना का जीवंत प्रमाण है।
अंतिम दिवस पर दो सत्र आयोजित हुए। पहला सत्र “सांस्कृतिक स्मृति, विरासत और कलात्मक अभिव्यक्ति” तथा दूसरा “हिमालयी संस्कृति का भविष्य—नीति, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन रहा। इस अवसर पर शोधार्थी विकास बन्याल, ममता देवर, मधु चंदा, अमित शोष्टा, यदुनंदन और शिवम ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
जिला भाषा अधिकारी चंबा तुकेश शर्मा, डीपी मल्होत्रा, डॉ. विपिन राठौर, डॉ. विद्यासागर शर्मा, डॉ. मोहिंदर सालारिया, डॉ. कविता बिजलवान किरण कुमार वशिष्ठ, भूपिंदर जसरोटिया, धर्म देवा, नोट ओं मैप संस्था के संस्थापक मनुज शर्मा, मगनदीप, विकास तथा राजेश मौजूद रहे।
भूरी सिंह संग्रहालय में तीन दिनों तक आयोजित सम्मेलन में सभी विद्वानों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। हम यहां पर भाग लेने वाले सभी आदिवासियों का आभार व्यक्त करते हैं। साथ ही इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी करवाने का प्रयास रहेगा।
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