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चम्बा , 09 अप्रैल [ के एस प्रेमी ] ! अक्सर बच्चों के दिल में अपने मां-बाप का नाम रौशन करने का जज्बा रहता है। खासकर बेटियों में यह जज़्बा हमेशा ही देखने को मिलता है। वहीं अगर बात करें जिला चम्बा कि तो यहां के मोहल्ला चमेशनी की रहने वाली लता अपने स्वर्गीय पिता पूर्ण चंद के नाम व उनकी विरासत को अभी भी संजोए हुए हैं। पिछले 4 सालों से लगातार शरद नवरात्रि व चैत्र नवरात्रों में लता काली माता व भगवान शंकर की दो मूर्तियां बनाती है जिसे मुहल्ला जुलाहकड़ी व माई के बाग मंदिर में पूजा के लिए भेजा जाता है। लता के पिता को मूर्ति बनाने का बहुत शौक था पिता की मृत्यु के बाद मंदिर कमेटी के लोगों ने स्वर्गीय पूर्ण चंद के परिवार से आग्रह किया कि वह भी मूर्तियां बनाने की कोशिश करें। लता बचपन से ही अपने पिता के साथ मूर्ति बनाने में उनका हाथ बटाती थी। पिछले चार साल पहले लता ने इन मूर्तियों को बनाने का कार्य शुरू किया और वह बिना किसी मेहनतनामे के इन मूर्तियों को बनाकर मंदिर कमेटी को देती थी। हालांकि अब मंदिर कमेटियों का यह मानना है कि पूजा के लिए जो मूर्ति इस्तेमाल होती है वह फ्री ऑफ कॉस्ट नहीं ली जाती है यही वजह है कि वह लता के काम से खुश होकर उन्हें आशीर्वाद के रुप में ईनामी राशि देते हैं। मूर्तिकार लता ने बताया कि वह पिछले चार सालों से लगातार इसी तरह से मूर्ति बना रही है। उन्होंने कहा कि वह अपने पिता के साथ बचपन से ही मूर्ति बनाने में उनका हाथ बटाती थी पिता को देख-देख कर उन्हें भी यह प्रेरणा मिली कि वह आज इस तरह से मूर्ति बना रही है। उन्होंने कहा कि उनके पिता की मृत्यु के बाद मंदिर कमेटी वालों ने उनसे आग्रह किया था कि वह मूर्ति बनाए तो निरंतर इस तरह से पिछले 4 सालों से लगातार मूर्ति बना रही है। लता ने कहा कि वह पहले इन मूर्तियों का कोई मेंहनतनामा नहीं लेती थी लेकिन मंदिर कमेटी मुफ्त में मूर्तियां पूजा में इस्तेमाल करने से मना करते हैं इसीलिए कुछ ईनाम के तौर पर उन्हें देते हैं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब रामलीला कमेटी रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाते थे तो कारीगर बाहर से नहीं आए तो उन्होंने 15 फीट के तीन पुतले यहां पर बनाए थे। उन्होंने कहा की वह अपने पिता की विरासत व उनके नाम को इस तरह से आगे जिंदा रखना चाहती है।
चम्बा , 09 अप्रैल [ के एस प्रेमी ] ! अक्सर बच्चों के दिल में अपने मां-बाप का नाम रौशन करने का जज्बा रहता है। खासकर बेटियों में यह जज़्बा हमेशा ही देखने को मिलता है। वहीं अगर बात करें जिला चम्बा कि तो यहां के मोहल्ला चमेशनी की रहने वाली लता अपने स्वर्गीय पिता पूर्ण चंद के नाम व उनकी विरासत को अभी भी संजोए हुए हैं। पिछले 4 सालों से लगातार शरद नवरात्रि व चैत्र नवरात्रों में लता काली माता व भगवान शंकर की दो मूर्तियां बनाती है जिसे मुहल्ला जुलाहकड़ी व माई के बाग मंदिर में पूजा के लिए भेजा जाता है।
लता के पिता को मूर्ति बनाने का बहुत शौक था पिता की मृत्यु के बाद मंदिर कमेटी के लोगों ने स्वर्गीय पूर्ण चंद के परिवार से आग्रह किया कि वह भी मूर्तियां बनाने की कोशिश करें। लता बचपन से ही अपने पिता के साथ मूर्ति बनाने में उनका हाथ बटाती थी। पिछले चार साल पहले लता ने इन मूर्तियों को बनाने का कार्य शुरू किया और वह बिना किसी मेहनतनामे के इन मूर्तियों को बनाकर मंदिर कमेटी को देती थी।
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हालांकि अब मंदिर कमेटियों का यह मानना है कि पूजा के लिए जो मूर्ति इस्तेमाल होती है वह फ्री ऑफ कॉस्ट नहीं ली जाती है यही वजह है कि वह लता के काम से खुश होकर उन्हें आशीर्वाद के रुप में ईनामी राशि देते हैं।
मूर्तिकार लता ने बताया कि वह पिछले चार सालों से लगातार इसी तरह से मूर्ति बना रही है। उन्होंने कहा कि वह अपने पिता के साथ बचपन से ही मूर्ति बनाने में उनका हाथ बटाती थी पिता को देख-देख कर उन्हें भी यह प्रेरणा मिली कि वह आज इस तरह से मूर्ति बना रही है। उन्होंने कहा कि उनके पिता की मृत्यु के बाद मंदिर कमेटी वालों ने उनसे आग्रह किया था कि वह मूर्ति बनाए तो निरंतर इस तरह से पिछले 4 सालों से लगातार मूर्ति बना रही है।
लता ने कहा कि वह पहले इन मूर्तियों का कोई मेंहनतनामा नहीं लेती थी लेकिन मंदिर कमेटी मुफ्त में मूर्तियां पूजा में इस्तेमाल करने से मना करते हैं इसीलिए कुछ ईनाम के तौर पर उन्हें देते हैं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब रामलीला कमेटी रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाते थे तो कारीगर बाहर से नहीं आए तो उन्होंने 15 फीट के तीन पुतले यहां पर बनाए थे। उन्होंने कहा की वह अपने पिता की विरासत व उनके नाम को इस तरह से आगे जिंदा रखना चाहती है।
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