
*“परीक्षा परिणाम में भारी गड़बड़ी से बोर्ड विद्यार्थियों के साथ कर रहा मानसिक प्रताड़ना ”-अ.भा.वि.प.* *“विद्यार्थियों की आत्महत्या शिक्षा तंत्र की विफलता का परिणाम”- दिशांत जरयाल*
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शिमला , 22 मई [ शिवानी ] ! अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अपने स्थापना काल से ही छात्र हित में आवाज बुलंद करती आ रही है इसी संदर्भ में प्रदेश में हाल ही में हुए कक्षा 12वीं के परीक्षा परिणामों को लेकर जो घटनाएँ सामने आई हैं, वे अत्यंत दुखद, पीड़ादायक और चिंताजनक हैं। परीक्षा परिणाम जारी करने में हुई चूक और शिक्षा बोर्ड की लापरवाही के कारण प्रदेश के दो छात्र जीवन से हार मानकर आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाने को मजबूर हुए। यह न केवल शिक्षा व्यवस्था पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह है, बल्कि पूरे समाज के लिए आत्ममंथन का विषय है। प्रदेश सह मंत्री दिशांत जरयाल ने कहा कि एक ओर जहाँ विद्यार्थियों ने पूरे वर्ष मेहनत से पढ़ाई कर परीक्षा दी, वहीं दूसरी ओर शिक्षा बोर्ड ने परिणाम जारी करते समय आवश्यक सावधानी नहीं बरती। पहले 17 मई को घोषित परिणामों में अनेक कमियां पाई गईं, जिन्हें सुधारते हुए 21 मई को पुनः संशोधित परिणाम जारी करने पड़े। प्रदेश भर का जो परिणाम 17 मई को 83.16% था वही परिणाम 21 मई को बढ़ कर 88.64% किया गया। दुर्भाग्यवश, इस बीच कुछ विद्यार्थियों को गलत तरीके से फेल घोषित कर दिया गया, जिससे विद्यार्थियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ा और उन विद्यार्थियों ने न केवल अपनी जान गवाई साथ ही अपने परिवार के साथ खिलवाड़ किया है। ऐसे में तहसील पालमपुर के अंतर्गत आने वाले स्कूल पहाड़ा की छात्रा ने जहर खा कर जान गवाई वही दूसरी तरफ प्रदेश की राजधानी शिमला में एक छात्रा ने परीक्षाओं में उत्तीर्ण न होने पर पुल से खाई में छलांग लगा कर जान गवाई प्रदेश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी खबरें देखने को मिली है ऐसे में परिषद का प्रशासन से स्पष्ट शब्दों में प्रशन है कि इन छात्रों की जिम्मेदारी कौन लेगा ? यह घटना शिक्षा बोर्ड की गैर-जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली को उजागर करती है। परीक्षा परिणाम जैसे संवेदनशील कार्य में यदि इतनी लापरवाही बरती जाती है, तो वह विद्यार्थियों के भविष्य के साथ मज़ाक से कम नहीं है। इस त्रुटि ने न केवल छात्र-छात्राओं का मनोबल गिराया, बल्कि समाज के सामने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था छात्रों के हित में काम कर रही है या केवल सरकार द्वारा आई अन्य शिक्षा के अलावा अधिसूचनाओं पर ही काम करते हैं उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस त्रुटि के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए। साथ ही, परीक्षा परिणाम तैयार करने और घोषित करने की प्रक्रिया को पारदर्शी, सही और त्रुटिरहित बनाया जाए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक विद्यालय में प्रशिक्षित मानसिक परामर्शदाताओं की नियुक्ति की जाए, ताकि विद्यार्थी तनाव और दबाव की स्थिति में उचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। दिशांत ने बताया कि आत्महत्या जैसे संवेदनशील विषयों पर रिपोर्टिंग करते समय संयम और जिम्मेदारी बरती जाए, जिससे अन्य विद्यार्थी प्रभावित न हों। समाज, अभिभावक और शिक्षक — सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि असफलता अंत नहीं है। हमें समाज में उत्कृष्ट न आने वाले विद्यार्थियों के प्रति घृणा भाव न रखते हुए उनके प्रति प्रोत्साहन दिखाना चाहिए । परिषद ने प्रदेश सरकार को चेतावनी देते हुए बोर्ड को बताया कि शिक्षा व्यवस्था को केवल अंक आधारित न बनाकर विद्यार्थी केंद्रित बनाया जाए, जहाँ शिक्षा का उद्देश्य केवल सफलता नहीं, बल्कि एक सशक्त, संवेदनशील और मानसिक रूप से स्वस्थ नागरिक बनाना हो।
शिमला , 22 मई [ शिवानी ] ! अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अपने स्थापना काल से ही छात्र हित में आवाज बुलंद करती आ रही है इसी संदर्भ में प्रदेश में हाल ही में हुए कक्षा 12वीं के परीक्षा परिणामों को लेकर जो घटनाएँ सामने आई हैं, वे अत्यंत दुखद, पीड़ादायक और चिंताजनक हैं। परीक्षा परिणाम जारी करने में हुई चूक और शिक्षा बोर्ड की लापरवाही के कारण प्रदेश के दो छात्र जीवन से हार मानकर आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाने को मजबूर हुए। यह न केवल शिक्षा व्यवस्था पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह है, बल्कि पूरे समाज के लिए आत्ममंथन का विषय है।
प्रदेश सह मंत्री दिशांत जरयाल ने कहा कि एक ओर जहाँ विद्यार्थियों ने पूरे वर्ष मेहनत से पढ़ाई कर परीक्षा दी, वहीं दूसरी ओर शिक्षा बोर्ड ने परिणाम जारी करते समय आवश्यक सावधानी नहीं बरती। पहले 17 मई को घोषित परिणामों में अनेक कमियां पाई गईं, जिन्हें सुधारते हुए 21 मई को पुनः संशोधित परिणाम जारी करने पड़े। प्रदेश भर का जो परिणाम 17 मई को 83.16% था वही परिणाम 21 मई को बढ़ कर 88.64% किया गया।
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दुर्भाग्यवश, इस बीच कुछ विद्यार्थियों को गलत तरीके से फेल घोषित कर दिया गया, जिससे विद्यार्थियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ा और उन विद्यार्थियों ने न केवल अपनी जान गवाई साथ ही अपने परिवार के साथ खिलवाड़ किया है। ऐसे में तहसील पालमपुर के अंतर्गत आने वाले स्कूल पहाड़ा की छात्रा ने जहर खा कर जान गवाई वही दूसरी तरफ प्रदेश की राजधानी शिमला में एक छात्रा ने परीक्षाओं में उत्तीर्ण न होने पर पुल से खाई में छलांग लगा कर जान गवाई प्रदेश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी खबरें देखने को मिली है ऐसे में परिषद का प्रशासन से स्पष्ट शब्दों में प्रशन है कि इन छात्रों की जिम्मेदारी कौन लेगा ?
यह घटना शिक्षा बोर्ड की गैर-जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली को उजागर करती है। परीक्षा परिणाम जैसे संवेदनशील कार्य में यदि इतनी लापरवाही बरती जाती है, तो वह विद्यार्थियों के भविष्य के साथ मज़ाक से कम नहीं है। इस त्रुटि ने न केवल छात्र-छात्राओं का मनोबल गिराया, बल्कि समाज के सामने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था छात्रों के हित में काम कर रही है या केवल सरकार द्वारा आई अन्य शिक्षा के अलावा अधिसूचनाओं पर ही काम करते हैं
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस त्रुटि के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए। साथ ही, परीक्षा परिणाम तैयार करने और घोषित करने की प्रक्रिया को पारदर्शी, सही और त्रुटिरहित बनाया जाए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक विद्यालय में प्रशिक्षित मानसिक परामर्शदाताओं की नियुक्ति की जाए, ताकि विद्यार्थी तनाव और दबाव की स्थिति में उचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।
दिशांत ने बताया कि आत्महत्या जैसे संवेदनशील विषयों पर रिपोर्टिंग करते समय संयम और जिम्मेदारी बरती जाए, जिससे अन्य विद्यार्थी प्रभावित न हों। समाज, अभिभावक और शिक्षक — सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि असफलता अंत नहीं है। हमें समाज में उत्कृष्ट न आने वाले विद्यार्थियों के प्रति घृणा भाव न रखते हुए उनके प्रति प्रोत्साहन दिखाना चाहिए ।
परिषद ने प्रदेश सरकार को चेतावनी देते हुए बोर्ड को बताया कि शिक्षा व्यवस्था को केवल अंक आधारित न बनाकर विद्यार्थी केंद्रित बनाया जाए, जहाँ शिक्षा का उद्देश्य केवल सफलता नहीं, बल्कि एक सशक्त, संवेदनशील और मानसिक रूप से स्वस्थ नागरिक बनाना हो।
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